Home » Story

मैं अपने बेटे से भरण पोषण मांगने का हक रखती हूं

Dated-10 Oct 2023 

नेहा अंदर कमरे में तैयार हो रही थी और विनीत उसका बाहर इंतजार कर रहा था। घड़ी की तरफ देखते हुए उसने नेहा को आवाज लगाई,
"अरे मैडम, और कितनी देर लगेगी? पार्टी खत्म हो जाएगी तब आओगी क्या?"
" हां हां आ रही हूँ। इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो? अब तैयार भी ढंग से ना होऊँ क्या?"नेहा तैयार होती होती अंदर कमरे में से ही बोली।
" अब देख लो, तुम्हारा ही मायका है। वो लोग क्या सोचेंगे कि मैं तुम्हें इतना लेट लेकर आया हूं। कहीं ये ही ना सोच ले कि तुम्हें मायके नहीं आने देता"
विनीत ने सोफे पर बैठते हुए कहा तो नेहा ने अंदर से ही जवाब दिया,
" अरे जनाब, अगर अच्छे से तैयार होकर नहीं जाऊंगी तो वो लोग ये भी कह सकते हैं कि तुम मुझे ढंग से नहीं रखते हो। फिर ना कहना कि तुमने तो अपने मायके मेरी हँसाई करा दी"
और जोर से हँस दी। विनीत भी मुस्कुरा कर रह गया। तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई तो नेहा ने अंदर से विनीत को आवाज लगाई,
" विनीत जरा देखना तो कौन आया है"
" जैसा आप कहें मालकिन"
कहता हुआ विनीत उठा और जाकर दरवाजा खोला तो सामने कोई कुरियर वाला खड़ा था। उसने विनीत को देखते ही उससे पूछा,
" मिस्टर विनीत के नाम कोरियर है। क्या वो यहीं रहते हैं?"
" हां हां, मैं ही हूं। लाओ दो भाई किसने क्या भेजा है। जरा देखूँ तो"
कोरियर वाले ने उसे वो कुरियर पकड़ाया। उसके सिग्नेचर लिए और वहां से निकल गया। विनीत कुरियर खोल कर देखने लगा तो उसके नाम एक नोटिस था। जिसे पढ़ते ही उसके माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी।
तभी अंदर से आते हुए नेहा ने कहा,
" लो हो गई तैयार। बस अब निकलते हैं। वैसे कौन आया था विनीत"
पर विनीत ने कोई जवाब नहीं दिया। अभी भी वो उस पेपर को दोबारा पढ़ रहा था। उसे बिल्कुल चुप देखकर नेहा ने फिर पूछा,
" क्या हुआ विनीत, मैं तुमसे पूछ रही हूं। ऐसे क्या आँखे फाड़कर इस पेपर को पढ़ रहे हो। अब देर नहीं हो रही है क्या?"
विनीत ने नेहा की तरफ देखा और वो पेपर उसके हाथ में पकड़ा दिया। नेहा ने भी उस पेपर को पढ़ा तो उसके चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा। और वो विनीत से बोली,
" ये औरत ऐसा कैसे कर सकती है? बिल्कुल चैन नहीं है इसे। खुद की जिंदगी तो सुख चैन से जी ली, अब हमारी जिंदगी को जहान्नुम बना रखा है। पूरा मूड अपसेट कर दिया। कह देती हूँ एक पैसा नहीं देने वाली मैं उस औरत को"
विनीत अब भी चुप ही खड़ा था। उसको चुप देखकर नेहा भड़कते बोली,
" अब बोलो भी करना क्या है?"
" मैंने पहले ही कहा था कि रबड़ को भी उतना ही खींचो जितना वो खींच सकें। लेकिन नहीं, तुम्हें तो पूरा रबड़ तोड़ने की लगी थी। अब मुझसे क्या पूछ रही हो कि करना क्या है?"
विनीत ने भी भड़कते हुए कहा।
विनीत के चिल्लाने पर नेहा भी गुस्से में पैर पटकती हुई अंदर कमरे में चली। दोनों ने अपना जाना कैंसल कर दिया। थोड़ी देर बाद विनीत उस नोटिस को लेकर कमरे में गया और नेहा से बोला,
" अब बैठी क्या हो? चलो मामा जी के घर चलते हैं"
" मुझे नहीं जाना तुम्हारे मामा के घर पर। और उस औरत की शक्ल तो मुझे बिल्कुल भी नहीं देखनी। पता नहीं अपने आप को समझती क्या है? "
" कोर्ट के चक्कर लगाओ, उस से बेहतर है मामा जी के घर चले चलो"
विनीत में जब दो टूक बात की तो नेहा मन मार कर उठी और विनीत के साथ उसके मामा जी के घर के लिए रवाना हो गई।
कार चलाते समय विनीत को याद हो आया अपना बचपन जो कि काफी गरीबी और तंगहाली में गुजरा था। पिता की जब मौत हुई थी तो ले देकर उनके पास दो कमरे का घर था। मां शिमला भी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, इस कारण वो दूसरों के घर खाना बनाने का काम करने लगी। हालांकि उसके नाना जी ने काफी कहा कि विनीत को हम रख लेंगे और तुम्हारी दूसरी शादी करवा देते हैं। पर विनीत के लिए वो तैयार नहीं हुई।
विनीत पढ़ने में अच्छा था। इसलिए वो उसमें ही अपना भविष्य देखती थी। उसे पढ़ा-लिखा करके बड़ा आदमी बनाना चाहती थी। ऐसा नहीं था कि उन्होंने अकेले ने मेहनत की विनीत को आज इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके ननिहाल का बहुत योगदान रहा इन सब में।
नाना नानी के बाद मामा मामी ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। आखिर सब की मेहनत रंग लाई और वो पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी पा गया।
नौकरी लगने के साथ ही शिमला ने अपने बेटे विनीत के लिए नेहा को पसंद कर लिया और उसे अपने घर की बहू बनाकर अपने घर ले आई। विनीत ने काफी मेहनत करके अपना बड़ा सा मकान भी बना लिया। दो साल बाद दोनों एक बेटे के माता-पिता भी बन गए। कहते हैं जब सब कुछ अच्छा होता है तो इंसान का दिमाग भी घूमता हैं।
अब नेहा का स्वभाव बदलने लगा था। उससे शिमला जी की सेवा नहीं होती थी। बात-बात पर उन्हें ताने सुनाना उसकी आदत हो चुकी थी। धीरे-धीरे उसने विनीत को भी अपने ही रंग में रंग लिया।

लेकिन हालात तब ज्यादा बिगड़ गए जब चार महीने पहले मामा जी की मृत्यु हुई। इधर शिमला जी तो अपने मायके आई हुई थी, उधर नेहा ने उनके आने के सारे रास्ते बंद कर दिए। नेहा जानती थी कि शिमला जी को सबसे बड़ा संबल अपने मायके वालों का था।पर अब मायके में ही कोई बोलने वाला नहीं है क्योंकि मामा जी तो अब रहे नहीं, तो जब पंद्रह दिन का सारा कार्यक्रम निपटा तो नेहा ने विनीत से कहकर शिमला जी को वृद्ध आश्रम ही भेज दिया।
पर अब छह महीने बाद शिमला जी की तरफ से नोटिस मामा जी के बेटे राजेश ने भेजा था। दोनों इसी बात को लेकर सकते में आ चुके थे। मतलब मां राजेश भैया के पास उनके घर पर है।
सोचते सोचते मामा जी का घर भी आ गया। वहां पहुंचे तो देखा की दरवाजा खुला हुआ है। राजेश और माँ बाहर सोफे पर ही बैठे हुए हैं। विनीत और नेहा को आया हुआ देखकर राजेश मुस्कुरा कर बोला,
" हमें पता था कि तुम लोग जरूर आओगे इसलिए तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे"
राजेश को इग्नोर करते हुए विनीत मां से बोला,
" मां यह सब क्या है? आपने अपने ही बेटे को नोटिस भेज दिया?"
माँ उस की तरफ देखते हुए बोली,
" इसमें गलत क्या है विनीत? मैंने तो नोटिस ही भेजा है तुमने तो मुझे वृद्धाश्रम भेज दिया था। यह तो शुक्र मनाओ कि मेरे भाई की छमाही थी तो मेरा भतीजा वृद्ध आश्रम में उस दिन लोगों को खाना खिलाने गया था जहां मैं उसे मिल गई। नहीं तो मेरी पूरी जिंदगी वृद्ध आश्रम में ही बीतती"
तभी नेहा बोली,
" हां तो शौक से रहिए ना अपने मायके में। हमारी छाती पर मूंग क्यों दल रही है आप"
" मेरे मायके वालों को तो मैं अखर नहीं रही हूं बहू। वो मुझे किसी चीज के लिए मना नहीं करते। कम से कम मेरी किस्मत इतनी अच्छी तो है। लेकिन मुझे भी तो रहने के लिए अपनी छत चाहिए, अपने खर्च के लिए पैसे चाहिए। जब मैंने अपनी पूरी जिंदगी इस को पालने पोसने में लगाई है तो उसका हर्जाना दूसरों से क्यों मांगू"
विनीत के कुछ कहने से पहले ही नेहा बीच में बोल उठी,
" किस चीज के पैसे दे आपको? आपके पास था ही क्या? कोई प्रॉपर्टी नहीं थी आपके पास और मकान भी हमने बनवाया है। विनीत पति है मेरा। एक पैसा नहीं देने दूँ मैं आपको"
" बहु तेरा पति तुझे मुबारक हो, मुझे तो मेरे भरण-पोषण के पैसे चाहिए। भीख नहीं मांग रही हूं, हक मांग रही हूं। तुम लोग खुद नहीं दोगे तो कोर्ट जा कर लूंगी, पर लूंगी जरूर। आखिर मैंने अपनी पूरी जिंदगी स्वाहा की है इसके लिए। चाहती तो मैं भी दूसरी शादी कर सकती थी। पर इसके लिए मैंने सब कुछ छोड़ दिया"
नेहा भी कहाँ चुप रहने वाली थी। बात को पलटते हुए बोली,
" आखिर आप भी दुनिया वालों के भड़काने में आ गई। अरे ये लोग तो पराए है माँ जी, लेकिन हम तो आपके अपने थे। आप हम लोगों से कोर्ट के चक्कर लगवाओगी?"
उसकी बात सुनकर मां मुस्कुराते हुए बोली,
" वाह बहू! आज ये पराए हो गए और तुम अपनी? जब कि तुम भूल गई मुझे घर से भी तुमने ही निकाला था। दर बदर की ठोकर खाने के लिए मुझे छोड़ दिया। यह तो भला हो इन लोगों का कि इन लोगों ने मुझे घर में जगह दी। तब तुम्हें याद नहीं आया था कि जो तुम काम कर रही हो वो कोर्ट से चक्कर लगाने के लायक ही है"
तभी राजेश बोला,
" देख विनीत, मुझे नेहा से कोई बात नहीं करनी। अब तू बता, बाहर ही सेटलमेंट करेगा या कोर्ट चलेगा। तुम लोगों को बुआ को घर में रहने के लिए छत देनी ही पड़ेगी, भरण पोषण के पैसे देने पड़ेंगे, उनके खर्चे उठाने पड़ेंगे। नहीं तो हम कानून का सहारा ले रहे हैं। और तुम पढ़े लिखे हो, कानून तुम भी जानते हो। क्या होगा, तुम्हें भी अच्छे से पता है"
इससे पहले नेहा कुछ कहती विनीत ने उसे इशारा करके चुप करा दिया और राजेश ने बोला,
" ठीक है, मैं तैयार हूं। क्या चाहते हैं आप"
" ज्यादा कुछ नहीं। तुम्हें बुआ को रहने के लिए अपने घर में कमरा देना पड़ेंगा। साथ ही उनके गुजर बसर के लिए भरण पोषण देना पड़ेगा"
" जब घर में ही रह रही है तो गुजर-बसर के लिए अलग से पैसे क्यों?"
बीच में ही नेहा बोल पड़ी। तभी मां बोली,
" बहु मैं वहां रहूंगी जरूर पर अपना खाना पीना खुद ही कर लूंगी। मुझे तेरे टुकड़ों की जरूरत नहीं है"

आखिरकार पूरा मामला कोर्ट के बाहर ही सेटल किया गया। जिसके तहत शिमला जी को घर में रहने के लिए दो कमरे दे दिए गए। और भरण पोषण और बाकी खर्चा विनीत को ही उठाना पड़ा।